Recession explained in Hindi
जापान और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में दिसंबर तिमाही में गिरावट दर्ज की गई है। और इसके साथ अब यह दोनों देश मंदी की कगार पर है। पिछले कुछ दिनों में हमने यह सुना होगा, कई जगहों पर पढ़ा भी होगा की जापान और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था मंदी की कगार पर है। अंग्रेजी में इसे ही रिसेशन कहते है।
मंदी क्या है ?
अगर देश की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है तो कहा जाता है कि मंदी आ रही है। या देश मंदी की तरफ बढ़ रहा है। पिछले दिनों दुनिया की दो मजबूत अर्थव्यवस्थाओं जापान और ब्रिटेन की मंदी की तरफ जाने की खबरें सामने आई है। तो इसलिए हमे यह समझना जरुरी है की मंदी क्या है?
हम आम जनता की जिंदगी की पर कई चीजों का प्रभाव पड़ता रहता है और इसके पीछे के कुछ कारण भी होते है।
हमने अपने आसपास के लोगो को अक्सर ऐसा कहते हुए सुना होगा की, आजकल धंदा मंदा चल रहा है। लेकिन क्या हो अगर यह स्थिति पूरे देश में कारोबार में दिखाई देने लगे। और अगर ऐसा होता है तो माना जाता है की देश में आर्थिक मंदी का माहौल है।
हमने यह सुना होगा की भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 7 प्रतिशत से बढ़ रही है। हमारे देश की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) दुनिया में सबसे तेज बढ़ने वाली जीडीपी है। जीडीपी यानी देश की आमदनी। अब आमदनी बढ़ना तो अच्छी बात होती है, कभी धीरे बढ़ती है तो कभी तेजी से। लेकिन जब यही आमदनी कम होनी लगे तो इस स्थिति को रिसेशन यानि मंदी कहते हैं।
अब मान लीजिये की आप कोई व्यवसाय करते हो, जिसमे आप लोगो को कोई सेवा प्रदान करते हो, या फिर किसी तरह की वस्तु बेचते हो, तो ऐसा हो सकता है की किसी महीने आपकी वस्तु, सेवा को लोग ज्यादा ख़रीदे और कभी ऐसा भी वक्त आ सकता है की लोग उस वस्तु या सेवा को कम ख़रीदे। ऐसी स्थिति में आपको व्यवसाय में कम आय होगी। लोग कम खरीदेंगे तो कम उत्पाद होगा। कम पैसे मिलेंगे। और व्यवसाय में कुछ हद तक मंदी आ जाएगी।
सरल भाषा में कहे तो, इसी स्थिति को हम बड़े स्तर पर देखे, आकलन करे। यह पुरे देशभर के व्यवसाय, उद्योग की एक तरह की मार्कशीट होती है। जिससे हमें पता चलता है की किस व्यवसाय या कारोबारी क्षेत्र में क्या हालात है। अमेरिकी अर्थशास्त्री जूलियस सिस्कन ने एक फार्मूला दिया उसके मुताबिक अगर किसी देश की जीडीपी लगातार दो तिमाहियों तक गिरती रहती है तो इसे मंदी का नाम दिया जाता है। दो तिमाही यानि लगातार छ महीनों तक किसी देश के आमदनी कम हो रही है। तो जाहिर है की यह चिंता का विषय है। और इसीको कहा जाता है की देश में मंदी आ गई है।
देश की आमदनी (GDP) कम होने से क्या समस्या खड़ी होती है?
देश हमसे बनता है और हम देश से, यानी हम सबकी आमदनी जुड़कर देश की आमदनी बनती है। जैसे बिजनेस मैन्युफैक्चरिंग या सर्विस सेक्टर इन सबसे जो आमदनी होती है, वह देश की आमदनी हो जाती है। अब अगर देश के कई बिजनेस को किसी कारण से अचानक नुकसान उठाना पड़े, तब यहां काम कर रहे लोगों की नौकरी पर संकट आ जाता है। या लोगों की नौकरी में सैलरी कम हो जाती है। लोगो की नौकरिया तक चली जाती है। अर्थव्यवस्था की सेहत तब अच्छी मानी जाती है जब इसमें पैसा घूमता रहता है। यानी लोग अपने पास के पैसे खर्च करें, तभी वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। जिसकी वजह से वस्तुओ का उत्पाद भी बढ़ेगा। जिससे उत्पाद और अर्थव्यवस्था का पहिया एक अच्छी गति से चलता रहेगा। लेकिन नौकरी जाने के डर से लोग खर्च कम कर देंगे, जिनकी नौकरी चली गई है उनके पास खर्च करने के लिए एक नया पैसा नहीं होगा। वस्तुओ की मांग घटेगी, उत्पाद घटेगा और व्यवसाय को नुकसान उठाना पड़ जायेगा।
इसका दूसरा कारन यह भी है की अगर कोई व्यक्ति या बिजनेस बहुत ज्यादा कर्ज ले लेते हैं। तो उस कर्ज चुकाने की लागत भी बढ़ जाती है। यानि कमाई का एक बड़ा हिस्सा कर्ज चुकाने में चला जायेगा। तो फिर बिजनेस को आगे बढ़ाने का पैसा कहां से आएगा। ऐसा ही देश के साथ भी होता है। अगर सरकार बहुत ज्यादा कर्ज ले लेती है, तो बजट का एक बड़ा हिस्सा ब्याज के भुगतान में चला जाएगा। अब डेवलपमेंट के काम जिसके जरिए अर्थव्यवस्था को बल मिलता है, वह कम हो जाएंगे। एक दो वर्षों के अंतराल में कर्ज का जाल अर्थव्यवस्था में एक बड़ी समस्या बनकर उभरेगा और अर्थव्यवस्था को मंदी की तरफ ले जाएगा। जैसा हाल ही में श्रीलंका में हुआ था। इसे दूसरे नजरिये से देखे तो इंफ्लेशन देश की प्रगति के लिए जरूरी होता है, लेकिन अगर महंगाई अचानक से बहुत तेजी से बढ़ती है। तब यह देश के लिए एक खतरे की घंटी है। मतलब महंगाई बढ़ेगी, तो लोगों की खरीदने की क्षमता कम होगी, यानी मांग हो जाएगी कम। अब इसके कारन व्यवसाय में उत्पाद किये प्रोडक्ट बाजार में कम बिकेंगे। बिजनेस को नुकसान होगा। इसका सरल अर्थ है की बिजनेस की आमदनी कम, यानी देश की आमदनी कम और वो मंदी का पहिया फिर से चलने लगेगा।
और एक तीसरा कारन है। मान लीजिये की बाजार में किसी वस्तु का दाम घट जाता है। मतलब मान लीजिए अगर कोई चीज ₹100 रूपये की मिल रही थी। अब इसमें एक बड़ा हिस्सा कॉस्ट या लागत का होगा। मान लेते है की लागत 90 रुपयों की है और थोड़ा प्रॉफिट का हिस्सा होगा जो की होगा 10 रूपये। यही १० रूपये मुनाफा है। बिजनेस हमेशा चाहता है कि मुनाफा और बढ़े, या कम से कम मुनाफा कम ना हो। या किसी तरह का कोई घाटा ना हो। अब अगर इकॉनमी में लोगों के खरीदने की क्षमता कम हो जाए, या प्रोडक्शन बहुत ज्यादा बढ़ जाए। और या सप्लाई बढ़ जाए। तो इसके कारन बाजार में पहले से ही हो प्रोडक्ट है, उन्हें बेचने के लिए मजबूरन दाम कम करने पड़ जायेंगे। हो सकता है की वस्तुएं घाटे में बेचनी पड़ जाये। इससे व्यवसाय पर बुरा असर पड़ता है और वो आगे का प्रोडक्शन रोक देते हैं। फिर से वही पहिया घूमने लगेगा, प्रोडक्शन बंद तो नौकरी कम और आमदनी कम।
19वीं सदी में कई ऐसे तकनीकी बदलाव हुए थे, जिनसे कम लेबर में ज्यादा उत्पादन की क्षमता विकसित हुई। औद्योगिक क्रांति ने कई व्यवसायों को अप प्रचलित बना दिया। जिससे आर्थिक मंदी का एक दौर शुरू हुआ था। वर्तमान में भी कई अर्थशास्त्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोट्स के आने से चिंतित है। क्योंकि इससे नौकरियों पर खतरा आएगा। जो देश को मंदी की तरफ धकेल सकता है। ऐसी आशंकाएं जताई जाती हैं, यह सब कारण मानवीय है। लेकिन एक कारण और होता है जो किसी के हाथ में नहीं होता। इसीको अंग्रेजी में ब्लैक स्वन इवेंट कहा जाता है।
मंदी से आम आदमी की जिंदगी में क्या असर पड़ता है?
जैसा हमने पहले भी इस बात की चर्चा की है की मंदी का मतलब बिक्री कम, बिक्री कम यानि उत्पादन कम, उत्पादन कम तो बिजनेस ठप, और बिजनेस ठप होंगे तो नौकरियां ठप। नौकरियां ठप तो आम आदमी की आमदनी कम। मतलब डिमांड हम और कम डिमांड तो उत्पादन और कम। और इस तरह से यह पहिया घूमता रहता है। और इसे वक्त पर नहीं रोका गया तो इससे सरकार की आमदनी कम हो जाती है। जिसके चलते सरकार लोगों की मदद के लिए पैसा कम खर्च कर पाती है। योजनाओं पर खर्चा कम होता है। बिजली, पानी, सड़क, पुल, यातायात, स्कूल, अस्पताल इन सब पर कम खर्च होता है। जिसका अंत में नतीजा हो सकता है देश की, अर्थव्यवस्था की बर्बादी। हालांकि ऐसा कम ही होता है। अक्सर मंदी से बाहर निकलने के लिए सरकारें रास्ता ढूंढ लेती हैं।
भारत में कब-कब आर्थिक मंदी आई?
1947 से अब तक भारत ने चार बार आर्थिक मंदी देखी है। पहली बार 1958 में 1958 में ऐसा हुआ कि भारत की जीडीपी जीरो से भी नीचे यानी माइनस में चली गई। बिलों की दर में वृद्धि इसकी मुख्य वजह बताई गई थी। भारत में दूसरी बार अर्थव्यवस्था को झटका 1965-66 में लगा था। इस साल भारत में भयंकर सूखा पड़ा, उत्पादन में भारी गिरावट आई। लिहाजा देश की जीडीपी फिर से एक बार माइनस में चली गई।
तीसरी बार भारत में मंदी आनेका इंटरनेशनल कारण से साल था 1973 का। पेट्रोलियम उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने उन तमाम देशों को तेल एक्सपोर्ट करने पर रोक लगा दी जिन्होंने ओम के पूर्व युद्ध के दौरान इजराइल का समर्थन किया था इस घटना के चलते पूरी दुनिया में तेल की कीमतें 400 पर तक बढ़ गई थी
और फिर आया साल 1980 ईरान में अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक क्रांति हुई और ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी को देश की बागरो छोड़नी पड़ी ईरानी क्रांति के कारण दुनिया भर में तेल उत्पादन को बड़ा झटका लगा। भारत का तेल आयात का बिल भी करीब दोगना हो गया और भारत के निर्यात में 8 फस की गिरावट दर्ज की गई।
साल 19998 में भारत का जीडीपी ग्रोथ – 5.2 प्रतिशत रहा है।
साल 2008 को भी मंदी का दौर कहा जा सकता है जब पूरी दुनिया ने मंदी की मार झेली थी लेकिन तब भारत ने अपने मूलभूत मजबूत कारकों के चलते मंदी को बेहतर तरीके से झेला था।