As a Man Thinketh : हमारे जीवन का हर एक पहलू हमारे किसी ना किसी विचार से जुड़ा हुआ है। हमारे विचार चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, अच्छे हो या बुरे, यह सब हमारे जीवन को किसी ना किसी रूप में जरूर प्रभावित करते हैं। हमारे विचारों का प्रभाव जीवन के किसी ना किसी हिस्से पर जरूर दिखता है। चलिए समझते हैं कि हमारे मन के विचार हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं।
आज हम जिस बुक के बारे में बात करने वाले हैं वे हैं “As a Man Thinketh”। यह किताब को जेम्स एलन ने 1903 में लिखी थी। जेम्स एलन ब्रिटेन के 19वीं शताब्दी के एक मशहूर दार्शनिक और लेखक थे। As a Man Thinketh बाइबल की एक कहावत पर आधारित है। जिसमें लिखा है कि इंसान जो भी अपने मन में सोचता है वह वैसा ही बन जाता है। इसमें ऑथर ने बताया कि हमारे विचारों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। वह बताते हैं कि किसी व्यक्ति का जीवन उसके विचारों से किस प्रकार जुड़ा होता है।
As a Man Thinketh किताब 1903 में जरूर लिखी गई लेकिन आज भी इसकी सार्थकता साबित होती है। व्यक्ति जो भी विचार अपने मन में लंबे समय तक रखता है, उनके बारे में सोचता है, वह वैसा ही बन जाता है। लोग अपने आप को उन विचारों से बनाते हैं, जो वह मन में सोचते हैं। उन्हें बढ़ावा देते हैं। विचार ही इंसान के चरित्र को बनाते हैं। फिर बाहरी परिस्थितियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। As A Man Thinketh बुक में सात चैप्टर दिए गए हैं। ऑथर ने हर चैप्टर में हमारे विचारों के प्रभाव को हमारे जीवन के किसी ना किसी पहलू से जोड़कर बताया है।
विचार और व्यक्तित्व (Thought and Character)
- हम खुद के रचनाकार हैं। हमने कहावत सुनी है, की जैसा हम सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं। यही सच भी है। हम जैसा सोचते हैं, हम जैसी थॉट्स रखते हैं, हमारा कैरेक्टर उसी थॉट्स का परिणाम है। जैसे एक पेड़ बिना बीज के एक पेड़ नहीं बन सकता। वैसे ही एक इंसान बिना सोच के इंसान नहीं बन सकता। हम जो होते हैं वही सोच के बीज अपने दिमाग में बोते हैं। कर्म सोच का बीज है।
- आनंद और दुख उसका फल। हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं। अगर हम अच्छी सोच रखेंगे, तो अच्छा और सक्सेसफुल इंसान बनेंगे। बुरा और नेगेटिव सोच रखेंगे तो ठीक इसका उल्टा होगा। इस भौतिक संसार में इंसान नियमों के साथ जुड़ा होता है। जैसी सोच उनकी बनती जाती है, वह ठीक वैसा ही बनता चला जाता है।
- सभ्य और देवताओं की तरह कैरेक्टर कोई जादू से नहीं पैदा होते। वे सब भी इंसान होते हैं, जो खुद की सोच पर खुद के थॉट्स पर कंट्रोल करके वैसा ही इंसान बन जाते हैं। मतलब साफ है कि इंसान, शैतान या भगवान खुद से ही बनता है। जब मन में गुस्सा, जलन, नफरत, बदला जैसी सोच रखोगे तो वैसा ही इंसान बनते चले जाओगे। वही जब मन में प्यार, खुशी, शांति और शेयर करने की मानसिकता वाले थॉट्स रखोगे, तो ठीक वैसे ही बनते चले जाओगे।
- खुद को तराशने के लिए सबसे पहले अपने डेली के थॉट्स पर नजर डालें। ध्यान से देखना होगा कि हम दिन भर क्या क्या सोचते हैं? क्या किसी के लिए दिल में नफरत है? ईर्ष्या है? या किसी को लेकर दिल में कोई गुस्सा है? क्या हम सेल्फिश हैं? मन में कोई लालच है? बहुत ही ध्यान से देखने के बाद ही अपने थॉट्स को देख पाओगे। अंदर कभी खत्म ना होने वाला खजाना भरा हुआ है। आप जानते तक नहीं है कि आप क्या-क्या कर सकते हैं! कैसी शक्ति आपको मिल सकती है!
- आपने वेदों के, बाइबल के, कुरान के या पुरानी महागाथाओ के योद्धाओं की कहानियां तो जरूर सुनी होंगी। भगवान और देवताओं की कहानियां जरूर सुनी होंगी। अगर आप उस पर यकीन नहीं भी करते हैं, तो कम से कम इतना तो मानते ही है ना कि बिना आग के धुआ नहीं उठ सकता।
- तो कुछ तो सच होगा। आखिर वह कौन से लोग थे? जिन्हें हम दुनिया महायोद्धा, देवता या भगवान कहकर पूजा करते है। वह वो लोग होते हैं, जिन्होंने अपने अंदर छिपी कभी ना खत्म होने वाले खजाने को खोज निकाला। वह सब पार कर गए। जो एक सामान्य इंसान के लिए जादू जैसा है। आप भी वैसा बन सकते हो। इसके लिए बस ध्यान देना होगा, अपने थॉट्स पर। और फिर उसे तराशना होगा।
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परिस्थितियों पर विचारों का प्रभाव (Effects of Thoughts on Circumstances)
- हमारा दिमाग एक बगीचे की तरह होता है। बगीचे को सुंदर बनाने के लिए उसमें उगी खराब घास को बाहर से आए जंगली जानवरों को हटाना होता है। पौधों को पानी देना होता है। कुछ को काटकर तरसना पड़ता है। सबसे खास बात लगातार बगीचे का निरीक्षण करना पड़ता है। अवेयर रहना पड़ता है, बिल्कुल इसी तरह हमको अपने माइंड की देख हाल करनी होती है। माइंड में आ रहे नेगेटिव थॉट्स को हटाना होता है।
- अच्छे थॉट्स को बढ़ाना होता है। उन्हें तराशना होता है। डर, ईर्ष्या, नफरत, लालच जैसी भावनाओं से दिमाग को बचाना होता है। लगातार ध्यान रखना पड़ता है, अवेयर रहना पड़ता है, देखना होता है कि माइंड में क्या चल रहा है। हमारे आसपास के वातावरण और माहौल की वजह से हमारे विचार बनते हैं। विचार ही हमारा कैरेक्टर बनाते हैं।
- इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है, आप गरीब घर में पैदा हुए इसलिए जिंदगी भर गरीब बनकर ही रह गए। हमारी परिस्थितियों से ही हमारी सोच बनती है। लेकिन थॉट प्रोसेस पर ध्यान देकर हम इसे बदल सकते हैं। ऐसा करने से हमारा कैरेक्टर पूर्णतः बदल हो जाएगा। बस सीखना होगा थॉट प्रोसेस को, जानना होगा यह समझना होगा कि सभी में एक समान शक्तियां मौजूद हैं। बस उसे हासिल करना होगा। सोच बदलते जाओगे परिस्थितियां अपने आप बदल जाएंगे।
- हर थॉट्स रूपी बीज या तो हमने बोया होता है, या फिर हमने खुद ही उसे दिमाग में आने दिया है। उसने हमारे माइंड में अपनी जड़ें जमा ली हैं। अब कभी ना कभी वह बीज बड़ा भी होगा, उसमें फल भी लगेंगे।
- अगर थॉट्स अच्छे होंगे तो आपको अच्छा फल मिलेगा, बुरे थॉट्स होंगे तो बुरा फल मिलेगा। हम वह अट्रैक्ट नहीं करते हैं, जो हम चाहते हैं। हम वह अट्रैक्ट करते हैं जो हम हैं। मतलब हम खुद को जो मान लेते हैं, वही बन जाते हैं। प्रॉब्लम यहीं पर आती है। हम परिस्थितियों को तो बदलना चाहते हैं, लेकिन खुद को नहीं।
स्वास्थ्य और शरीर पर विचारों का प्रभाव (Effects of Thoughts on Health & Body)
- शरीर हमारे दिमाग का गुलाम होता है। अलादीन के चिराग वाले जिन्न की तरह यह माइंड की हर बात को मानती है। चाहे इसे जो भी हुक्म दिया हो। बीमारी से डरने वाले थॉट्स माइंड में रखोगे तो देर सवेर जरूर बीमार हो जाओगे। ठीक इसी तरह हैप्पीनेस और हेल्थी वाले विचार माइंड में रखोगे, तो एनर्जी से भरपूर और खूबसूरत हो जाओगे।
- बीमारियां और हेल्थ परिस्थितियों की तरह ही थॉट्स की वजह से होते हैं। कमजोर और बीमार थॉट्स कमजोर और बीमार बना देते हैं। डर के जो थॉट्स होते हैं, वह बॉडी को एक बुलेट से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अपने आसपास देख लो वही लोग बीमार होते हैं, जो बीमारी से डरते रहते हैं।
- इस डर ने लाखों जान ले ली है। इसके विपरीत स्ट्रांग हेल्थी और प्यूर थॉट्स बॉडी को वैसा ही बना देंगे। हमारी बॉडी बस एक इंस्ट्रूमेंट है। माइंड में इसे जैसा चाहोगे वह वैसा ही बन जाएगा। हम सोचते हैं कि हम डायट चेंज कर लेंगे, तो बॉडी चेंज हो जाएगी। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा।
- सबसे पहले अपने थॉट्स को चेंज करना होगा। इसे शुद्ध बनाना होगा। जैसे ही थॉट्स शुद्ध होंगे आपका माइंड खुद ही ख़राब डाइट लेने नहीं देगा। अगर अपनी बॉडी की हिफाजत करना चाहते हैं। तो सबसे पहले अपने माइंड की हिफाजत करिए।
- अपनी बॉडी को रिन्यू करना चाहते हैं, तो अपने माइंड को भी रिन्यू कीजिए। नेचर के साथ कनेक्ट रहिए। सूरज की रोशनी पड़ने दीजिए। एक सेकंड के लिए भी अपनी बॉडी के बारे में नेगेटिव मत सोचिए। जिस तरह की बॉडी बनाना चाहते हैं, वैसा ही महसूस कीजिए। यह मान लीजिए आप वैसा ही बन चुके हैं।
विचार और उद्देश्य (Thought and Purpose)
- जब तक थॉट्स के साथ कोई पर्पस या उद्देश्य नहीं होता, तब तक कोई भी सक्सेस नहीं मिल सकती। हमारे आसपास के लोग बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन उनका कोई गोल नहीं है। कोई उद्देश्य नहीं है। सब सर झुकाकर गुलामों की तरह जी रहे हैं। जिसके लाइफ में कोई पर्पस नहीं होता है। उनकी लाइफ में चिंता, डर, मुश्किल, हीनता घर बना लेती है। धीरे-धीरे इंसान कमजोर हो जाता है।
- हर इंसान के दिल में एक जायज पर्पस होना चाहिए। उसे प्लान के साथ हासिल भी करना चाहिए। सारे थॉट्स को सेंट्रलाइज करके, एक ऐसा पर्पस बनाओ, जो आपको हमेशा मोटिवेट करता रहे। As A Man Thinketh किताब का उद्देश्य स्पिरिचुअल हैप्पीनेस है। कोई फिजिकल ऑब्जेक्ट, जैसे मिलियनेयर बनना, या सिक्स पैक एप्स बनाना हो सकता है। ध्यान रखिए पर्पस ही आपको जिंदा रखता है।
- पर्पस ही हमें इंसान बनाता है। वरना हम और जानवरों में क्या फर्क रह जाएगा। अगर आप अपने पर्पस को हासिल करने में बार-बार फेल हो रहे हो, तो कोई बात नहीं। लाइफ का जो मेन पर्पस हैप्पीनेस है, उसे आप हासिल कर लोगे। एक दिन अपने पर्पस को भी हासिल कर लोगे।
- फेल होने से बिल्कुल भी घबराना नहीं है। पर्पस हासिल करने के लिए आपको हद से ज्यादा स्ट्रांग बनना होगा। वरना फियर और डाउट आपके बड़े से बड़े पर्पस को ध्वस्त कर देंगे। इसलिए माइंड को स्ट्रांग करने के लिए खुद के डर और संदेह पर विजय पानी होगी।
उपलब्धि पर विचारों का प्रभाव (Thought Factor in Achievement)
- हम जो कुछ भी हासिल करते हैं जो कुछ भी हासिल नहीं कर पाते हैं। वह सब डायरेक्टली हमारे अपने थॉट्स के रिजल्ट होते हैं, हार और जीत दोनों ही हमारी रिस्पांसिबिलिटी है। हमारी ताकत और कमजोरी शुद्धता और अशुद्ध हमारी अपनी है। ना कि किसी और की।
- गलतियां भी हमारी अपनी है, उन्हें सही करना भी हमें ही है, किसी और को नहीं। खुशियां भी हमारी अपनी है, किसी और की नहीं। यानी कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं। जैसा सोचते रहते हैं वैसे ही बने रहते हैं।
- एक स्ट्रांग इंसान एक कमजोर की हेल्प तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि वह खुद ना चाहे। अगर वह चाहे कि उसे स्ट्रांग बनना है, तो उसे किसी और की जरूरत नहीं पड़ेगी। उसे खुद के एफर्ट डालने होंगे। खुद में वह क्वालिटी और स्ट्रेंथ महसूस करनी होगी। जिस के जैसा बनना चाहते हैं।
- हम तभी उठ सकते हैं, विजय पा सकते हैं, उद्देश्य हासिल कर सकते हैं। जब तक कि हम थॉट्स पर जीत हासिल नहीं कर लेते हैं। जब तक थॉट्स का लेवल नहीं बढ़ा लेते। अगर आप सेल्फिश हो, शेयर करना नहीं जानते। तो आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। अगर आप सैक्रिफाइस करोगे। तो उसके बदले आपको सक्सेस मिलेगी।
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दृष्टिकोण और आदर्श (Vision and Idol)
- हम जो कुछ भी तरक्की देखते हैं। वह किसी ना किसी के विजन का परिणाम होता है। इंसान कभी अपने सपनो को नहीं भूल सकता, वही आइडियल होते हैं। कोलंबस ने दूसरी दुनिया का विजन बनाया था बाद में उसे डिस्कवर भी कर लिया, बुद्ध ने आम जिंदगी से हटके स्पिरिचुअल हैप्पीनेस और शांति पाने का विजन बनाया, जिसे आज पूरी दुनिया जानती है।
- अगर आपसे कहा जाए कि जाओ तो आप कहां जाओगे। वहीं अगर आपसे कहा जाए कि मुंबई जाओ, तो आप निश्चित जा सकते हैं। यही विजन है की हमें कहां तक जाना है। अब रास्ते आपको ढूंढने हैं। वहां जाने के हजार रास्ते होंगे, हर रास्ते में हजारों मुश्किलें भी आएंगी। लेकिन जाना है मतलब जाना है।
- विजन के बाद कोई समझौता नहीं। विजन तो बना लिया, लेकिन एक ऐसा आइडियल इंसान भी होना चाहिए। जिसने आपसे पहले वह पा लिया हो फिर उसको आइडियल मान लो। जैसे उसने रास्ते में आने वाली हजार मुश्किलों को पार कर जीत हासिल की वैसे ही आपको भी करना है।
- सब कुछ आसान हो जाएगा। यहां यह भी ध्यान रखना होगा आपके आइडियल की हर बात से सहमत नहीं होना है। आपको अपने थॉट्स बनाने होंगे विजन ऐसा होना चाहिए। जिसमें सिर्फ आपका स्वार्थ ना जुड़ा हो, बल्कि उसमें लोगों की भलाई भी जुड़ी हो। आपका विजन इतना खूबसूरत होना चाहिए, हर पल अपने आप को मोटिवेट करो। जैसे-जैसे मंजिल की ओर बढ़ते हो, उत्सुकता बढ़ती है।
मन की शांति (Peace of Mind)
- मन की शांति वह खजाना है। जो दुनिया के के 2 प्रतिशत लोग भी हासिल नहीं कर पाते। जिसने पा लिया फिर वह इस दुनिया में अलग ही नजर आता है। पढ़ने सुनने में आसान लगता है, लेकिन लगातार सेल्फ कंट्रोल के बाद ही इसे पाया जा सकता है। जब अंडरस्टैंडिंग बढ़ जाती है, लव और अटैचमेंट में फर्क समझ आ जाता है।
- जब मन से सेल्फिश फीलिंग खत्म हो जाती है, जब यह जान लेते हो कि मैं तू अपना पराया एक मित है। इंसानों ने बनाया है। एक्चुअल में मैं ही सब कुछ हूं मैं ही ईश्वर हूं तब इंसान का मन शांत हो जाता है। यही हर इंसान का मेन पर्पस होना चाहिए एक शांत इंसान सीख जाता है।
- खुद को कैसे कंट्रोल करना है। खुद को किसी भी परिस्थिति में अडॉप्ट कर लेता है। फिर उसे सक्सेस हासिल हो जाती है। बच्चों के काम जैसा हो जाता है, वास्तव में फिर सक्सेस और फेलियर का फर्क ही खत्म हो जाता है। बस वह जीता है, अपना हर पल एक राजा की तरह उसकी शक्ति इतनी बढ़ जाती है, कि वह कोई भी मुश्किल काम कर सकता है।
- आप जहां भी हो जिस भी कंडीशन में हो सबसे पहले खुद को एक्सेप्ट करो। अपने थॉट्स को प्यूर करो। खुद की बॉडी के बारे में हमेशा अच्छा थॉट्स रखो लाइफ में एक विजन बनाओ। फिर वेल्थी हैप्पीनेस और कमाने के सफर पर निकल पड़े हो। आपको अभी डिसाइड करना है गुलामों की तरह जैसे सभी जीते हैं वैसे जीना है, या एक शानदार हेल्थी सक्सेसफुल से भरपूर लाइफ जीनी है।
आशा करता हु की As a Man Thinketh इस किताब की समीक्षा के माध्यम किताब के संदर्भ में आवश्यक जानकारी मिली होती। जिससे आप अपने जीवन में जरुरी बदलाव ला सके। अगर आपके कोई सवाल हो, तो आप मुझे अपने सवाल मेल कर सकते है।
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